देलवाड़ा जैन मंदिर, माउंट आबू

माउंट आबू सिरोही में स्थित देलवाडा जैन मंदिर, शुघ्द सफेद संगरमरमर व जटिल नक्काशी के लिए प्रसिध्द है। यह जैन समाज के लिए तीर्थ स्थान हैं और विश्व में एक महत्वपूर्ण पर्यटन आकर्षएा स्थल है। इन मंदिरों का प्रबन्धन श्री कल्याएाजी परमानंदजी पेढी सिरोही, द्वारा किया जाता है।

देलवाड़ा जैन मंदिर के बारे में

देलवाडा का जैन मंदिर अपनी असाधारण वास्तुकला और संगरमरमर के पत्थरो पर की बेहद आर्कषक व मोहक नक्काशी के लिए दुनिया भर में माने जाने वाले जैन मंदिरो में से एक है यहा प्राकृतिक सौन्दर्य की की दिव्यानुभूति एवं पांच मंदिरो के शिल्प वैभव का बेजोड संगम है। शिल्प कला विषेशज्ञो के अनुसार यह मंदिर दुनियां के सात अजूबो मे सामिल ताजमहल से भी अधिक बेहतरीन है इसकी आलौकिक छवि देखते ही बनती है। बाहर से साधारण दिखने वाला ये मंदिर इंटिरियर डिजाईन मे मानव निर्मित शिल्प कौशल एवं वास्तूकला के साथ साथ आध्यात्म चेतना एवं शांन्ति को भी अपने में समेटे हूवे है। मंदिर के आस पास की हरि भरि पहाडियां एवं मंदिर की भव्यता इस तपोभूमि को और भी दिव्य एवं आलोकिक बनाती है।

अवलोकन

राजस्थान में माउंट आबू की अरावली पर्वतमाला श्रृंख्ला की पहाडीयों के मध्य में अपने भव्य एवं विराट स्वरूप में यह देवास्थान देलवाडा जैन मंदिर के नाम से विख्यात है। यह जैनियो के लिए सबसे खुबसूरत मोहक तीर्थस्थल है। 11वीं से 16वीं शताब्दी के मध्य इस मंदिर का निर्माएा अलग अलग काल खण्डो में हूवा हैै। वास्तुपाल व तेजपाल नामक दो व्यक्तियों द्वारा इस मंदिर को चित्रित किया गया। मंदिर के हुक व कोनो पर अतयन्त जटिल नक्काशी एवं शिल्प को उकेरा गया है। यहॉ की छतो, महराबो, स्तम्भ एवं दिवारो पर अदभूत आश्चर्यजनक एवं अविश्वसनिय सजीव शिल्प कला, पच्चीकारी, व मानव निर्माएा की आश्चर्यचकित कलाकृतीयों का भव्य खजाना दिखाई पडता है।

जानकारी

सिरोही से लगभग 85 किलोमीटर की दूरी पर स्थित देलवाड़ा जैन मंदिर, इस क्षेत्र और पूरे भारत में जैनियों के लिए एक सम्मानित तीर्थ स्थल हैं। देलवाड़ा जैन मंदिर प्रकृति की गोद में स्थित हैं, जो चारों ओर से हरी-भरी पहाड़ियों और आम के पेड़ों से घिरा है। ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, इन मंदिरों का निर्माण ग्यारहवीं और तेरहवीं शताब्दी ईस्वी के बीच किया गया था। पर्यटकों की एक नियमित आमद के साथ-साथ जो लगातार बढ़ रही है, हर साल धर्मनिष्ठ जैनियों द्वारा इसका दौरा किया जाता है। कहा जाता है कि सफेद संगमरमर के मंदिर जैन संतों को समर्पित हैं।

दूर से देखने पर किसी को आश्चर्य हो सकता है कि इन मंदिरों को उनकी सुंदरता के लिए इतना सम्मान क्यों दिया जाता है। यद्यपि मंदिर बाहर से साधारण प्रतीत होते हैं, यह तभी होगा जब उनके अंदर एक कदम कलात्मकता के कारनामों पर अचंभित किया जा सकेगा। अविश्वसनीय रूप से अलंकृत संगमरमर के पत्थर की नक्काशी और मंदिर की छतों और स्तंभों पर सटीक नक्काशी फोटोग्राफरों की खुशी है।

छत पर अलंकृत सोने की पत्ती का काम है, और छत के चित्रों के बारीक विवरण की सराहना करने के लिए संभवतः दूरबीन की एक जोड़ी (मंदिर परिसर के अंदर फोटोग्राफी निषिद्ध है) के साथ ज़ूम इन करने की आवश्यकता होगी। चित्रों में जैन इतिहास और पौराणिक कथाओं की कहानियों को दर्शाया गया है। दोपहर से 3 बजे के बीच खुला, इन मंदिरों में प्रवेश निःशुल्क है। जबकि राजस्थान भर में अन्य जैन मंदिर हैं, दिलवाड़ा मंदिर अपनी स्थापत्य पूर्णता में बेजोड़ हैं।

वे न केवल स्मारक हैं – बल्कि पूरी तरह कार्यात्मक मंदिर हैं जहां जैनियों की भीड़ नियमित रूप से प्रार्थना करने के लिए आती है। मंदिरों में स्नान करने की सुविधा है, जो ‘पूजा’ (प्रार्थना) करने के लिए एक आवश्यक पूर्वापेक्षा है। सर्दियों के महीनों में, स्नान के लिए स्नान सुविधाओं को सौर ऊर्जा से गर्म किया जाता है।

पांच मंदिरों की अपनी विशिष्ट पहचान है, और उन गांवों के नाम पर रखा गया है जिनमें वे स्थित हैं। वे सभी महत्वपूर्ण तीर्थंकरों (संतों) को समर्पित हैं।

विमल वसाही: प्रथम जैन, आदिनाथी.

लूना वसाही : २२वें जैन तीर्थंकर, नेमिनाथ.

पिथलहार : प्रथम जैन तीर्थंकर, ऋषभ

पार्श्वनाथ: : २३वें जैन तीर्थंकर, पार्श्व।

महावीर स्वामी: अंतिम जैन तीर्थंकर, महावीर

इनमें विमल वसाही और लूना वसाही सबसे प्रसिद्ध हैं।

विमल वसाही
विमल वसाही मंदिर एक हजार से अधिक वर्षो से इस तपोभूमि का साक्षी रहा है। यह गुजरात के चालुक्य वंश द्वारा स्थापित किया गया था। मूर्ति की ऑखो में असली हीरे लगाये गए है। एवं बहुमूल्य हार से यह भव्य मूर्ति सूसज्जित है।
यह सबसे पुराना मंदिर है जिसे 1031 में सोंलकी राजा भीमदेव के महामंत्री विमलशाह ने बनवाया था।

लूना वसाही
यह मंदिर बाहर से देखने में विमल वसाही जैसा दिखता है। इस भव्य मंदिर का निर्माण 1230 में दो पोरवाड भाईयों, वास्तुपाल और तेजपाल ने किया जो गुजरात के वाहेला के शाशक थें इस मंदिर की विषेशता यह है कि यहॉ 10 हाथीयों का निर्माण संगरमरमर पर बडा सूक्ष्म कारीगरी के साथ नक्कासी कर के किया गया है इसे हाथी शाला या हाथी कक्ष भी कहते है हाथीयो को पालिस कर के वास्तविकता को छूने का सार्थक प्रयास किया गया है।

यहॉ 22वें जैन तीर्थ कर भरगवान नेमीनाथ की काले संगरमरमर से बनाई हूई मूर्ति विराजमान है।

पिथलहार
इस मंदिर में जैन धर्म के पहले तीर्थकर श्री ऋषभदेवजी की एक भव्य दिव्य एवं विशाल मूर्ति है जो पीतल एवं अन्य धातुओं से बनाई गई है, इस मूर्ति का वजन 4000 किलोग्राम है। इसी कारण इस मंदिर को पीतलहारा भी कहा जाता है। 1468—1469 में अहमदाबाद गुजरात के भीमशाह द्वारा यह मंदिर बनवाया गया।

पार्श्वनाथ
इस मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी के मध्य में संघवी मांडलिक और उनके परिवार द्वारा किया गया। इस मंदिर कि तीन मंजिला भव्य इमारत सभी मंदिरो से बडी है। पदमासन मुद्रा में विराजमान श्री पार्श्वनाथ जी दिव्य मूर्ति यहॉ स्थापित है। यहॉ की विषेश बात यह है कि प्रतिवर्ष पौष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी को सूर्य की पहली किरण सीधी श्यामवर्ण प्रतिमा पर पडती है।

महावीर स्वामी
यह मंदिर 1582 में बनाया गया एवं 1764 में श्रीरोही कलाकारों द्वारा उपरी दिवारो को चित्रित किया गया। यहॉ जैन धर्म के 24वें तीर्थकर महावीर स्वामी की मूर्ति स्थापित है एवं यहॉ की नक्काशी पच्चीकारी एवं एक एक आकृति को जीवन्त बनाने में की गई शिल्पकारी, कला एवं भाव अभिव्यक्ति का बेजोड खजाना है जिसमे फूलो,कबूतरो,दरबार के दृश्य नृत्यकीयॉ,घोडे, हाथी व अन्य दृश्यों को बडी भाव भगींमाओं के साथ तराशा गया है।

मूलनायक तीर्थंकरऋषभनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर
में निर्मित11वीं से 13वीं शताब्दी ई.
कला और मूर्तिकलादिलवाड़ा जैन मंदिर अपनी असाधारण वास्तुकला और अद्भुत संगमरमर पत्थर की नक्काशी के लिए दुनिया भर में जाने जाने वाले बेहतरीन जैन मंदिरों में से एक है, कुछ विशेषज्ञ इसे ताजमहल से भी बेहतर मानते हैं।
धर्मशाला / अतिथि सुविधाउपलब्ध
भोजनशाला / खाद्य सुविधाउपलब्ध
सिरोही शहर से दूरी84.9 किमी
संपर्क विवरणदेलवाड़ा, माउंट आबू, राजस्थान 307501