दिलवाड़ा जैन मंदिर, माउंट आबू
सौन्दर्य एवं अद्वितिय शिल्प कौशल से परिपूर्ण देलवाडा जैन मंदिर माउंट आबू में अरावली पर्वतमाला की पहाडियों की गोद में स्थापित है। यह मंदिर भक्ति, दृढता,श्रघ्दा एवं आध्यात्मिक उत्थान हेतू विश्व भर में प्रख्यात है। देलवाडा मंदिर सम्पूर्ण विश्व में फैले जैन समुदाय के लोगो के बीच आध्यात्मिक चेतना के केन्द्र के रूप में विशेष स्थान रखता है। 11वी. से 16वीं शताब्दी के बीच निर्मित यह देवस्थान अपनी असाधारण विशेषताओ, सूक्ष्म एवं अद्वितिय संगेमरमर के उपर नक्काशीदार कारीगरी के कारण इतिहासकारों, यात्रियों, वास्तुकारा,ें आध्यात्म विशेषज्ञो एवं ऋषी,मुनि,तपस्विओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता रहा है।
यहॉ के विशाल पंरिसर में पांच अलग—अलग मंदिर है। जिस प्रकार पांच तत्वो से मिल कर शरीर बना है उसी प्रकार ये पांच मंदिर पांच विशेषताओं से परिपूर्ण है जो पांचो मंदिर मिल कर देलवाडा मंदिर की भव्यता को पूर्ण करते है। जैन संस्कृति एवं जैन स्थापत्यकला से सरावोर होने के कारण यह मंदिर विश्व की महानतम धरोहरों में अपना विशेष स्थान रखता है। यहॉ भक्ति,सस्कृति एवं अघ्यात्म शांति का संगम देखने को मिलता है।
जंगल एवं पहाडियों के प्राकृतिक मनोरम दृश्य के मध्य स्थित लंबा विमल वसाही मंदिर और पितलहारा मंदिर पहले जैन तिर्थकर श्री आदिनाथजी की भव्यता एवं दिव्यता का सूचक है तो वहीं लूना वसाही 22वें जैन तीर्थकर श्री नेमीनाथजी को समर्पित है। इसके विपरीत दिशा में पार्श्वानाथ मंदिर 23वें जैन तीर्थकर श्री पार्श्वानाथजी को समर्पित है। 24वें जैन तीर्थकर श्रीमहावीर स्वामीजी का मंदिर इन्ही पांच मंदिरो मे से एक है जो श्री महावीर स्वामी जी के विशाल दिव्य स्वरूप का प्रतीक है।
सेठ श्री कल्याणजी परमानंदजी पेढी, सिरोही पूर्ण श्रघ्धा,निष्ठा एवं कुशलता से मंदिर परिसर का रख—रखाव कार्य करते है।